#patientproblems 108 एम्बुलेंस सेवा प्रदाता फर्म का दावा फेल, सच्चाई जानी तो निकला कुछ और...
दावा: जयपुर में 65 में से 58 दौड़ रहीं 108 एम्बुलेंस
रिपोर्टर से ड्राइवर बोला, देख लो साब... और कोई व्यवस्था हो जाए तो
पड़ताल के दौरान रिपोर्टर ने 108 हेल्पलाइन नंबर पर कॉल कर जेएलएन मार्ग के समीप दुर्घटना में एक व्यक्ति के घायल होने की सूचना दी। दो बार हेल्पलाइन नंबर पर कर्मचारी ने अधूरी बात सुनकर कॉल कट कर दिया। तीसरी बार में उसने एम्बुलेंस के आने आश्वासन दिया। कुछ देर बाद दोबारा कॉल किया और कॉल होल्ड पर रख ड्राइवर से बात कराई। ड्राईवर ने मानसरोवर में होना बताते हुए कहा कि आने में 45 से 50 मिनट लग जाएंगे साब, जल्दी है तो, कोई और व्यवस्था कर लों। इंतजार के बाद भी गाडी नहीं पहुंची।
एसएमएस में रोजाना 50 से ज्यादा आती थी
पड़ताल में पता चला कि हड़ताल के बाद से अब तक एसएमएस अस्पताल के इमरजेंसी व ट्रोमा सेंटर में एक भी 108 एम्बुलेंस घायल या मरीज को लेकर नहीं पहुंची। जबकि हड़ताल से पहले रोजाना 40 से 50 पहुंच रही थी। ट्रोमा सेंटर के काउंटर पर बैठे कम्प्यूटर ऑपरेटर ने बताया कि सरकारी व निजी अस्पतालों की एम्बुलेंस जरूर आ रही है।
पहले इंतजार कराया फिर मना किया
ट्रोमा सेंटर में घायल अवस्था में पहुंची नायला निवासी एक महिला के परिजनों ने बताया कि महिला का पांव फिसल गया था। जिससे सिर में चोट लगी और खून बहने लगा। तुरंत 108 एम्बुलेंस केे लिए फोन किया। पहले तो हेल्पलाइन नंबर पर कर्मचारी ने उनसे जानकारी ली फिर 15 मिनट तक इंतजार कराया और बाद में मना कर दिया। मजबूरन महिला को ई रिक्शा से ट्रोमा सेंटर लेकर पहुंचे।
जिम्मेदार भी अनजान, पता नहीं कहां दौड़ रही
सेवा प्रदात्ता फर्म के मीडिया प्रभारी भानु सोनी ने बताया कि जिले में 65 में से 58 एम्बुलेस दौड़ रही हैं। अगर वे समय पर नहीं पहुंच पा रही है तो, गलत बात है। हर रोज इसकी जानकारी ली जा रही है। ऊधर इस मामले में राजस्थान प्रदेश एम्बुलेंस कर्मचारी संघ के प्रदेशाध्यक्ष सुजाराम ने सेवा प्रदात्ता फर्म पर सवाल उठाते हुए बताया कि 80 फीसदी तो छोड़ो 20 फीसदी भी एम्बुलेंस चला लेते तो, पुराने कर्मचारियों से सेवा समाप्ति के बाद वापस काम पर लौटने की अपील नहीं करते।
न्यूज़ में दर्शया गया चित्र राजस्थान पत्रिका जयपुर संस्करण से लिया गया है